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UP Politics : स्‍वामी प्रसाद बोले- केवल ज्ञानवापी क्यों? सभी मंदिरों की जांच हो, बद्रीनाथ मंदिर को लेकर किया दावा

UP Politics : सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने अब बद्रीनाथ धाम को लेकर दिया विवादित बयान द‍िया है। इससे पहले वो रामचर‍ित मानस व‍िवाद के बाद साधु-संतों पर आपत्‍त‍िजनक बयान देने चुके हैं। अब स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि बद्रीनाथ 8वीं सदी तक बौद्ध धर्मस्थल था और बौद्ध धार्मिक स्थल खत्म करके बद्रीनाथ मंदिर बनाया गया है।

ज्ञानवापी प्रकरण में स्‍वामी प्रसाद मौर्य ने कहा क‍ि केवल ज्ञानवापी ही क्‍यों देश के सभी ह‍िन्‍दू मंद‍िरों की जांच होनी चाह‍िए। स्‍वामी प्रसाद मौर्य ने दावा क‍िया क‍ि देश के ज्‍यादातर मंद‍िर बौद्ध धर्मस्थलों को तोड़ कर बनाए गए हैं। स्‍वामी प्रसाद मौर्य यहीं पर नहीं रुके उन्‍होंने यहां तक कह डाला क‍ि शंकराचार्य ने बद्रीनाथ धाम बनवाया। यह पहले बौद्ध धार्मिक स्थल था। इसे तोड़कर बद्रीनाथ धाम बनाया गया।

ज्ञानवापी परिसर के सांइटिफिक सर्वे मसले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला चल रहा है। बहस के दौरान मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विष्णु जैन ने बुधवार को कहा कि वाराणसी में जिला जज के समक्ष अर्जी में कहा गया है कि गुंबद के नीचे स्ट्रक्चर है। सत्यता पता करने के लिए एएसआई सर्वे कराया जाए। वहां मंदिर है इसका साक्ष्य साइंटिफिक सर्वे से ही मिलेगा।

भारत सरकार की तरफ से इलाहाबाद हाईकोर्ट में बुधवार को यह आश्वासन दिया गया कि साइंटिफिक सर्वे से वाराणसी स्थित परिसर को कोई क्षति नहीं पहुंचेगी। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर ने जब ASGI शशि प्रकाश सिंह से यह पूछा कि क्या ड्रिल नहीं करेंगे, क्या करेंगे बताएं। इस पर ASGI ने कहा जांच कर फोटो लेंगे, संपत्ति को क्षति नहीं होगी।

अब जानते हैं बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास

  • बदीनाथ धाम की जुडी पौराणिक कथाएं

चार धामों में एक धाम बद्रीनाथ धाम है। इसका नाम स्थानीय शब्द बद्री से बना है, जो की एक प्रकार के जंगली फल बेरी का प्रकार है। ऐसा कहा जाता है जब भगवान विष्णु बद्रीनाथ धाम के इन पहाड़ो में तपस्या में बैठे थे तो उन्हें कठोर सूरज की गर्मी से बचाने के लिए उनकी पत्नी माँ देवी लक्ष्मी ने बेरी के पेड़ का रूप लिया था। यह न केवल भगवान विष्णु का निवास स्थान है बल्कि ज्ञान की खोज में आये अनगिनत तीर्थयात्रियों, साधु, संतो का घर भी है। मान्यता अनुसार इस मंदिर की स्थापना सतयुग में हुई थी।

बद्रीनाथ मंदिर का मुख्य आकर्षण यह है की, जब राजा अशोक भारत के शासक थे उस समय बद्रीनाथ मंदिर की पूजा बौद्ध मंदिर के रूप में की गयी। स्कंद पुराण के अनुसार, आदिगुरू शंकराचार्य को नारद कुंड से भगवान् विष्णु की मूर्ति प्राप्त हुई थी और फिर 8 वीं शताब्दी ए.डी. में उस मूर्ति को उन्होंने मंदिर में स्थापित किया। स्कंद पुराण में बद्रीनाथ धाम के बारे में उल्लेख किया गया है की: “स्वर्ग में, पृथ्वी पर और नरक में कई पवित्र मंदिर हैं; लेकिन बद्रीनाथ की तरह कोई मंदिर नहीं है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बद्रीनाथ जिसे बद्री विशाल भी कहा जाता है, को आदिगुरु श्री शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म की खोई प्रतिष्ठा को पुनः वापस पाने और राष्ट्र को एक बंधन में एकजुट करने के उद्देश्य से फिर से स्थापित किया था । बद्रीनाथ धाम एक प्राचीन भूमि है जिसका कई पवित्र ग्रंथो में उल्लेख किया गया।

”चढ़ाई के स्वर्ग” सबसे प्रचलित कहानी

इसके साथ कई पौराणिक कहानियां भी जुडी है जिनमे से पांडव भाइयों की  द्रौपदी के साथ, बद्रीनाथ के पास एक चोटी की ढलानों पर चढ़कर स्वर्गोहिनी या ‘चढ़ाई के स्वर्ग’  की कहानी सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इनमे से कुछ और कहानियां है कि भगवान श्री कृष्ण और अन्य महान संत तीर्थ यात्रा के दौरान अपनी आखिरी तीर्थ यात्रा के लिए बद्रीनाथ ही आये थे। ये कुछ कहानियां ऐसी हैं जिन्हें इस पवित्र तीर्थ स्थान से जोड़ा जाता है।

वामन पुराण के अनुसार, ऋषि नर और नारायण (भगवान विष्णु का पांचवां अवतार) बद्रीनाथ धाम में आकर तपस्या करते हैं।

ऐसा कहा जाता है की, कपिल मुनी, गौतम, कश्यप जैसे महान ऋषि मुनियों ने बद्रीनाथ धाम में तपस्या की है जबकि भक्त नारद ने यहाँ मोक्ष प्राप्त किया और भगवान कृष्ण ने इस क्षेत्र को प्यार किया. मध्ययुग के धार्मिक विद्वान,  आदि शंकराचार्य, रामानुजचार्य, श्री माधवचार्य, श्री नित्यानंद बद्रीनाथ धाम में शांत चिंतन और ज्ञान की प्राप्ति के लिए यहाँ आया करते थे जिसे आज भी बहुत से लोग जारी रखे हुए है।

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