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Fatehpur Tomb Dispute : 200 साल पुराना स्थल मंदिर या मकबरा? जांच रिपोर्ट सीएम योगी को सौंपी गई

फतेहपुर (उत्तर प्रदेश): जिले के आबूनगर इलाके में स्थित करीब 200 साल पुराना नवाब अब्दुल समद का मकबरा इन दिनों बड़ा विवाद बना हुआ है। हिंदू संगठनों का दावा है कि यह स्थल मूल रूप से शिव और कृष्ण का प्राचीन मंदिर था, वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह मकबरा नवाब अब्दुल समद खान और उनके पुत्र अबू बकर की कब्र है। मामला तूल पकड़ने के बाद प्रशासन ने विस्तृत जांच की और अब 75 पेज की रिपोर्ट तैयार कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेज दी है।

विवाद की जड़

यह स्थल पहले से ही राष्ट्रीय संपत्ति और वक्फ भूमि घोषित है, लेकिन दावों के बीच मतभेद बना हुआ है। हाल ही में कुछ हिंदू कार्यकर्ता अचानक परिसर में घुस गए थे, उन्होंने भगवा झंडा फहराने और धार्मिक अनुष्ठान करने की कोशिश की। पुलिस ने स्थिति बिगड़ने से पहले ही बैरिकेडिंग और लाठीचार्ज कर हालात पर काबू पा लिया।

जांच रिपोर्ट की मुख्य बातें

जिला प्रशासन ने इस संवेदनशील विवाद की जांच के लिए उच्चस्तरीय समिति गठित की थी, जिसमें –

  • 2 अपर जिलाधिकारी (ADM)
  • 3 उपजिलाधिकारी (SDM)
  • 2 तहसीलदार और 12 लेखपाल शामिल थे।

इन अधिकारियों ने जमीन से जुड़े खतौनी, पुराने जमींदारी रिकॉर्ड, वक्फ बोर्ड के दस्तावेज और ऐतिहासिक प्रमाणों की जांच की।

1️⃣ खतौनी और वक्फ दस्तावेज़ों में अंतर

  • मौजूदा खतौनी के अनुसार, गाटा संख्या 753 के तहत मकबरे की जमीन 11 बीघा दर्ज है।
  • जबकि वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में केवल 15 बिस्वा जमीन दर्ज है।
  • यानी करीब 10 बीघा से अधिक की विसंगति सामने आई है, जो हिंदू संगठनों के दावे को और मजबूत करती है।

2️⃣ ऐतिहासिक दस्तावेज़ों की जांच

रिपोर्ट में गाटा संख्या 753 की उत्पत्ति, म्यूटेशन, खाता संख्या में बदलाव और उसके उपयोग का पूरा ब्यौरा शामिल है।
साथ ही मकबरे के निर्माण काल और वर्तमान उपयोग की स्थिति पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

प्रशासन की सिफारिश और अगला कदम

प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि रिपोर्ट में सभी पक्षों के दस्तावेजों का तुलनात्मक अध्ययन कर स्पष्ट सुझाव दिए गए हैं।
अब अंतिम फैसला राज्य सरकार को लेना है कि इस विवादित भूमि पर किसकी दावेदारी मान्य होगी।

सुरक्षा व्यवस्था सख्त

विवाद की संवेदनशीलता को देखते हुए आबूनगर और आसपास के इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। पुलिस बल और खुफिया एजेंसियों को अलर्ट कर दिया गया है ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति को रोका जा सके।

“फतेहपुर का यह विवाद केवल धार्मिक पहचान का सवाल नहीं बल्कि जमीन की कानूनी स्थिति और ऐतिहासिक प्रमाणों का भी बड़ा मुद्दा बन गया है। अब सबकी नजरें योगी सरकार के फैसले पर टिकी हैं कि आखिर यह 200 साल पुराना स्थल मंदिर घोषित होगा या मकबरा बना रहेगा। “

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