
नई दिल्ली – Dadasaheb Phalke Biography: बॉलीवुड की जानी मानी एक्ट्रेस वहीदा रहमान ( Bollywood Actress Waheeda Rehman) को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड 2023 दिया जाएगा। इसका ऐलान होते ही साथी कलाकार काफी खुश हैं, क्योंकि काफी समय से यह कयास लगाया जा रहा था कि वहीदा रहमान का सिनेमा का यह बड़ा अवॉर्ड मिलेगा। यहां पर हम बता रहे हैं कि कौन थे दादा साहेब फाल्के, जिनके नाम पर सिनेमा का यह सबसे बड़ा सम्मान दिया जाता है।
भारतीय सिनेमा के जनक थे दादा साहेब फाल्के
सही मायने में दादा साहब फाल्के को हिंदी सिनेमा का पिता माना जाता है, यह उन्हीं की देन है कि सिनेमा आज भारत में इतने बड़े मुकाम पर है। उन्होंने कई तरह की मुश्किलों का सामना करते हुए सिनेमा को भारत में स्थापित किया। भारत सरकार प्रत्येक वर्ष ‘दादा साहब फालके पुरस्कार’ प्रदान करती है, जिसमें 10 लाख रुपये प्रदान किए जाते हैं और स्वर्ण कमल से साथ शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया जाता है।
बनाई सबसे पहली मूक फिल्म
भारत में शुरुआती दौर में मूक फिल्मों का ही निर्माण किया जाता था, इसके भी जनक दादा साहेब फाल्के ही हैं। आज से करीब 110 साल पहले उन्होंने वर्ष 1913 में राजा हरिश्चंद्र फिल्म बनाई थी, जो पहली फीचर फिल्म है और यह मूक थी। इसके बाद तेजी से फिल्म निर्माण कार्य शुरू हुआ।
17 वर्षों में 200 से अधिक फिल्में बनीं
30 अप्रैल, 1970 को महाराष्ट्र के त्रिंबक में जन्में दादा साहब फाल्के की वजह से फिल्म निर्माण ने गति पकड़ी और 1913 से लेकर 1930 तक 200 से अधिक फिल्मों का निर्माण हुआ। यहां पर यह बता दें कि लुमियर बंधुओं (अगस्टे और लुइस) को फिल्म निर्माण का अग्रदूत माना जाता है। दोनों ने पहली बार 1894 में पेरिस में फिल्मों की शूटिंग और प्रदर्शन शुरू किया था, हालांकि भारत में 20वीं सदी की शुरुआत में इसके लिए प्रयास हुआ।
देविका रानी को मिला था पहला अवॉर्ड
गौरतलब है कि दादा साहब फाल्के पुरस्कार के रूप में 10 लाख रुपये की राशि दी जाती है और यह सिनेमा में भारत का सर्वोच्च पुरस्कार है। यह अवॉर्ड पहली बार एक्ट्रेस देविका रानी को मिला था, जिन्हें वर्ष 1969 में 17वें राष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रदान किया गया।
फाल्के ने खुद बनाईं 125 फिल्में
गौरतलब है कि खुद दादा साहेब फाल्के ने कुल 125 फिल्मों का निर्माण किया था। भारतीय सिनेमा को अपने पैरों पर खड़ा कर उसको जवान करने वाले दादा साहेब फाल्के ने 74 वर्ष की उम्र में 16 फरवरी, 1944 को दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन इससे पहले वह एक विरासत सौंप गए, जो आज दुनिया भर में एक तरह से स्थापित हो गया है।