Guru Nanak Jayanti 2023 : गुरु नानक जयंती आज, आइए जानते हैं उनके और उनकी कुछ शिक्षाओं के बारे में

नई दिल्ली – Guru Nanak Jayanti : गुरुनानक का जन्म संवत् 1526 में कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन हुआ था। अनुयायी गुरुनानक जयंती को प्रकाश पर्व (Prakash Parv) के रूप में मनाते हैं। प्रत्येक वर्ष की तरह कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन गुरु नानक जयंती मनाई जा रही है। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा समेत देश के करीब-करीब सभी शहरों में गुरुनानक जयंती (Guru Nanak Dev Jayanti 2023) पर आयोजन हो रहे हैं। गुरुनानक का जन्म संवत् 1526 में कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन हुआ था। अनुयायी गुरुनानक जयंती को प्रकाश पर्व (Prakash Parv) के रूप में मनाते है। यहां पर हम बता रहे हैं कि गुरुनानक के बारे में जरूरी बातें।
सिख पंथ की स्थापना की
रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गांव खत्रीकुल में जन्में गुरु नानक ने सिख पंथ की स्थापना की थी। सिख पंथ की स्थापना करीब 500 वर्ष पूर्व 1500 में गुरु नानक ने की थी। गुरु नानक उस दौरान उत्तरी भारत और पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में रहते थे। दरअसल, सिख धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति को ही सिख कहा जाता है। यहां पर यह जानना जरूरी है कि पंजाबी भाषा में सिख का अर्थ शिष्य अथवा अनुयायी होता है।
बचपन में घटी कई चमत्कारिक घटनाएं
गुरु नानक देव को सिखों का आदिगुरु हैं माना जाता है। कहा जाता है कि गुरु नानक बचपन के दौरान कई चमत्कारिक घटनाएं घटीं, जिन्हें देखकर गांव के लोग ही उन्हें दिव्य व्यक्तित्व वाला मानने लग थे।
सत्संग के प्रति था रुझान
बहुत कम लोग जानते होंगे कि गुरुनानक देव की माता का नाम मेहता कालू था, जबकि मां का नाम तृप्ता देवी था। वहीं, नानक देव की बहन का नाम नानकी था। जहां उनका जन्म हुआ बाद में उसी जगह का नाम ननकाना पड़ा। माना जाता है कि गुरु नानक बचपन से ही सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। इसके बाद आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे।
रूढ़िवादिता के खिलाफ थे गुरुनानक देव
आध्यात्मकि होने के साथ-साथ गुरु नानक बचपन से ही रूढ़िवादिता के खिलाफ थे। कुरीतियों के खिलाफ उन्होंने जमकर संघर्ष किया। इसके लिए कई बार गुरु नानक देव को आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा।
कट्टर नहीं थे गुरुनानक
गुरु नानक का विवाह 1487 में माता सुलखनी से हुआ। दोनों दो पुत्र थे (श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द) थे। व्यापार करने निकले दान करके आ गए।
निकले थे व्यापार करने आ गए दान करके
पिता मेहता कालू ने नानकदेव को 20 रुपये देकर व्यापार भेजा। साथ ही हिदायत दी कि इस 20 रुपये से सच्चा सौदा करके आओ। वहीं, रास्ते में नानकदेव ने साधु-संतों को 20 रुपये का भोजन करवा दिया। घर आकर कहा कि मेरे लिए यही सच्चा सौदा है।
हृदय में बसता है ईश्वर
गुरु नानक आडंबर के सख्त खिलाफ थे। उनका मानना था कि ईश्वर मनुष्य के हृदय में बसता है। ऐसे में शरीर के बजाय मन को साफ रखना अनिवार्य है, क्योंकि ईश्वर भी कुटिल मन में निवास नहीं कर सकता है।
लहना सिंह को बनाया उत्तराधिकारी
गुरु नानक के जीवन के अंतिम करतारपुर में बीता और 25 सितंबर, 1539 को अपना शरीर त्यागा। अपने एक शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। यही लहना सिंह गुरु अंगद देव कहलाए।



