
नई दिल्ली – Special Session Of Parliament : संसद के विशेष सत्र से पहले संसद पुस्तकालय भवन में रविवार को सर्वदलीय बैठक हुई। इस बैठक में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला सहित कई विपक्षी पार्टियों के नेता शामिल हुए। मालूम हो कि संसद का विशेष सत्र कल से शुरू होने वाला है।
महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की मांग
सर्वदलीय बैठक के बाद कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सभी विपक्षी दलों ने इस संसद सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की मांग की है। वहीं, इस बैठक में शामिल भाजपा सहयोगी और राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि हम सरकार से इस संसद सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की अपील करते हैं। उन्होंने कहा, “19 सितंबर को गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर संसद नए भवन में स्थानांतरित हो जाएगी।”
18 से 22 सितंबर तक चलेगा संसद का विशेष सत्र
इससे पहले बुधवार को केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा था कि 18 से 22 सितंबर तक आयोजित होने वाले संसद के विशेष सत्र से एक दिन पहले 17 सितंबर को सभी दलों के नेताओं की बैठक बुलाई गई है। उन्होंने कहा था कि इस बैठक के लिए सभी नेताओं को निमंत्रण ईमेल के माध्यम से भेजा गया है।
75 वर्ष की संसदीय यात्रा पर होगी चर्चा
मालूम हो कि संसद के विशेष सत्र के दौरान संसद की 75 साल की यात्रा पर चर्चा होगी। संसदीय बुलेटिन में बुधवार को कहा गया था कि पांच दिवसीय बैठक के पहले दिन संसद में ‘संविधान सभा से शुरू होने वाली 75 वर्षों की संसदीय यात्रा पर चर्चा की जाएगी, जिसमें उपलब्धियां, अनुभव, यादें और सीख शामिल है। मालूम हो कि संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई थी।
नए संसद भवन में उपराष्ट्रपति ने फहराया राष्ट्रीय ध्वज
इससे पहले रविवार को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने संसद के विशेष सत्र की शुरुआत से एक दिन पहले नए संसद भवन में राष्ट्रीय ध्वज फहराया। सोमवार से शुरू होने वाले विशेष सत्र में संसदीय कार्यवाही पुराने से बगल के नए भवन में स्थानांतरित हो जाएगी। मालूम हो कि उपराष्ट्रपति धनखड़ ने नए संसद भवन के ‘गज द्वार’ के ऊपर झंडा फहराया। वहीं, इस मौके पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी मौजूद थे।
क्या होती है विशेष सत्र को बुलाने की प्रक्रिया?
संसद का स्वरूप राष्ट्रपति से मिलकर बना होता है। हमारे संविधान के मुताबिक भारत के राष्ट्रपति इस देश के संवैधानिक प्रमुख हैं और संसद के महत्वपूर्ण घटक हैं। यहां यह बताना भी दिलचस्प है कि संसद का महत्वपूर्ण घटक होने के बावजूद भी राष्ट्रपति चर्चा में भाग नहीं लेता है। संसद सत्र बुलाने काअधिकार संविधान का अनुच्छेद 85 (1) देता है।
सरकार के संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति की सलाह और फिर औपचारिक निवेदन के बाद भारत की राष्ट्रपति इसकी मंजूरी देती हैं। हमारे देश में संसद का सत्र बुलाए जाने को लेकर कोई निश्चित संसदीय कैलेंडर मौजूद नहीं है लेकिन परंपरा के मुताबिक सरकार तीन सत्र आयोजित करती है। जिसमें बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र शामिल होते हैं।
कब-कब बुलाया गया संसद का विशेष सत्र?
संविधान में कहीं भी शब्द ‘विशेष सत्र’ का कोई जिक्र नहीं है लेकिन यह आमतौर पर अहम विधायी और राष्ट्रीय घटनाओं से जुड़ी स्थितियों में सरकार को राष्ट्रपति के आदेश से देश के सभी सांसदों को समन करने का अधिकार देता है। साथ ही इस सत्र में प्रश्नकाल को हटाया जा सकता है। अभी तक इस देश में संसद के सात विशेष सत्र बुलाए जा चुके हैं।
पहला सत्र: 1977 में तमिलनाडु और नगालैंड में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने के लिए फरवरी में दो दिनों के लिए राज्यसभा का विशेष सत्र आयोजित किया गया था।
दूसरा सत्र: 1991 में हरियाणा में राष्ट्रपति शासन की मंजूरी के लिए जून में दो दिवसीय विशेष सत्र (158वां सत्र) आयोजित किया गया था।
तीसरा सत्र: 1992 में भारत छोड़ो आंदोलन की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए संसद के विशेष सत्र का आयोजन किया गया था।
चौथा सत्र: 26 सितंबर 1997 को भारत की आजादी की स्वर्ण जयंती का उत्सव मनाने के लिए संसद के विशेष सत्र का आयोजन किया गया था।
पांचवा सत्र: 2008 में लेफ्ट संगठनों ने कांग्रेस की मनमोहन सिंह नीत सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. जिसके बाद जुलाई में बहुमत साबित करने के लिए सरकार ने लोकसभा का विशेष सत्र बुलाया था।
छठा सत्र: 26 नवंबर 2015 में डॉ बीआर अंबेडकर की 125वीं जयंती मनाने के लिए मोदी सरकार ने विशेष सत्र का आयोजन किया गया था।
सातवां सत्र: अप्रत्यक्ष कर (जीएसटी) में सुधार के लिए बीजेपी ने मध्यरात्रि में संसद के विशेष सत्र का आयोजन किया गया था।