
नई दिल्ली। इस बार संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly – UNGA) के वार्षिक सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिस्सा नहीं लेंगे। उनकी जगह भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर महासभा के मंच से भाषण देंगे और दुनिया के सामने भारत का पक्ष रखेंगे। यह फैसला कई मायनों में महत्वपूर्ण है और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से लेकर घरेलू राजनीति तक में चर्चा का विषय बना हुआ है।
प्रधानमंत्री मोदी का अब तक का UNGA अनुभव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक कई बार संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया है। उन्होंने अपने भाषणों में भारत की लोकतांत्रिक परंपरा, आतंकवाद के खतरे, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों और विश्व शांति के लिए भारत की प्रतिबद्धता जैसे मुद्दों को प्रमुखता से रखा।
2021 में जब पीएम मोदी ने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय से भाषण दिया था, तब उन्होंने कहा था कि “लोकतंत्र में डाइवर्सिटी और डेमोक्रेसी भारत की पहचान है।” इसके अलावा उन्होंने वैक्सीन मैत्री पहल, आत्मनिर्भर भारत और विकासशील देशों की जरूरतों पर भी जोर दिया था।
ऐसे में इस बार प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका न जाना एक बड़ा बदलाव माना जा रहा है।
क्यों नहीं जा रहे पीएम मोदी अमेरिका?
प्रधानमंत्री मोदी के संयुक्त राष्ट्र न जाने के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं।
- घरेलू व्यस्तताएँ: इस समय भारत में कई बड़े आयोजन और राजनीतिक कार्यक्रम हो रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की घरेलू उपस्थिति इन कार्यक्रमों के लिए आवश्यक है।
- रणनीतिक प्राथमिकताएँ: भारत ने हाल के वर्षों में G20, BRICS और SCO जैसे मंचों पर अधिक जोर दिया है। संयुक्त राष्ट्र में लंबे समय से सुधार की प्रक्रिया ठहरी हुई है, जिससे भारत का फोकस धीरे-धीरे अन्य प्लेटफॉर्म्स पर बढ़ा है।
- राजनयिक संतुलन: इस समय भारत अमेरिका और रूस-चीन के बीच संतुलन बनाने की नीति पर चल रहा है। इसलिए पीएम मोदी का न जाना एक कूटनीतिक संकेत भी माना जा रहा है।
जयशंकर की भूमिका क्यों अहम है?
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर भारतीय विदेश सेवा (IFS) के वरिष्ठ अधिकारी रह चुके हैं और लंबे समय तक अमेरिका, चीन और अन्य देशों में राजदूत रहे हैं। उन्हें विदेश नीति का गहरा अनुभव है।
- अनुभवी राजनयिक: जयशंकर ने 2015 में भारत-अमेरिका के बीच ऐतिहासिक सिविल न्यूक्लियर डील को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
- स्पष्ट वक्ता: वे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सीधे और तथ्यपरक भाषा में भारत का पक्ष रखते हैं। कई बार उन्होंने पश्चिमी देशों की दोहरी नीति पर खुलकर सवाल उठाए हैं।
- ग्लोबल साउथ की आवाज़: जयशंकर लगातार यह कहते आए हैं कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य संस्थाओं को विकासशील देशों की आवाज़ सुननी चाहिए।
ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि उनके भाषण में भारत की पारंपरिक नीतियों के साथ-साथ नए वैश्विक दृष्टिकोण की झलक मिलेगी।
किन मुद्दों पर जोर देंगे जयशंकर?
संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से विदेश मंत्री जयशंकर भारत की ओर से निम्नलिखित मुद्दों को उठा सकते हैं—
- आतंकवाद: भारत लगातार कहता आया है कि आतंकवाद मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। पाकिस्तान की भूमिका को परोक्ष रूप से उजागर किया जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन: टिकाऊ विकास, ग्रीन एनर्जी और पर्यावरण संरक्षण पर भारत का रुख स्पष्ट होगा।
- UNSC सुधार: भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता की मांग करता आया है।
- वैश्विक दक्षिण की चुनौतियाँ: विकासशील देशों की आर्थिक कठिनाइयों, ऋण संकट और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी जैसे मुद्दों पर भारत की तरफ से ठोस बयान आ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या संदेश जाएगा?
प्रधानमंत्री मोदी का न जाना और जयशंकर का भाषण देना कई तरह के संदेश देगा—
- टीम इंडिया की ताकत: यह दर्शाएगा कि भारत की विदेश नीति सिर्फ प्रधानमंत्री पर निर्भर नहीं है, बल्कि पूरी टीम मिलकर काम करती है।
- स्वतंत्र विदेश नीति: अमेरिका और पश्चिमी देशों को यह संकेत जाएगा कि भारत अपनी प्राथमिकताओं के हिसाब से निर्णय लेता है, न कि दबाव में।
- विकासशील देशों के लिए उम्मीद: अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के देशों को भरोसा होगा कि भारत उनकी आवाज़ को वैश्विक मंच पर और मजबूत करेगा।
विश्लेषकों की राय
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी का इस बार न जाना असाधारण नहीं है। कई देशों के प्रमुख नेता हर साल UNGA में नहीं जाते।
- पूर्व राजनयिकों की राय: उनका कहना है कि जयशंकर का अनुभव भारत के लिए फायदेमंद होगा।
- विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब बहुपक्षीय मंचों से ज्यादा अपने हितों को क्षेत्रीय गठबंधनों के जरिए साधने की रणनीति पर काम कर रहा है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा 2025 का यह सत्र भारत के लिए इसलिए खास होगा क्योंकि इस बार पीएम मोदी की जगह विदेश मंत्री जयशंकर देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। उनका भाषण भारत की रणनीतिक सोच, स्वतंत्र विदेश नीति और विकासशील देशों की आकांक्षाओं को दर्शाएगा।
भारत के इस कदम से यह संदेश भी जाएगा कि अब भारत की कूटनीति किसी एक नेता पर आधारित नहीं है, बल्कि एक मजबूत संस्थागत ढांचे और अनुभवी नेतृत्व पर टिके हुए है।