मुंबई: महाराष्ट्र की सियासत में पवार का पावर कितना अहमियत रखता है यह शायद बताने की जरूरत नहीं…. हाल ही में जिस तरह से अजित पवार की बगावत से राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले उनके चाचा शरद पवार को झटका लगा है, इससे कमोवेश इतना तो जरूर लगने लगा है कि राजनीति में ऊंट किस करवट बैठेगा यह कोई नहीं बता सकता। फिलहाल बीजेपी इस दौरान अपनी स्पीड बनाने में सबसे आगे रही है। चाहे वह शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना का टूटना रहा हो या फिर अजित से शरद पवार की राकांपा यानी कि NCP को झटका दोनों ही राजनीतिक घटनाक्रम में फायदा बीजेपी का ही रहा। कोई कुछ भी कहे पलटती सियासत के बीच यह जान लेना बेहद जरूरी है कि महाराष्ट्र की राजनीति में पवार का पावर आखिरकार क्यों जरूरी है?
महाराष्ट्र पॉलिटिक्स में पवार क्यों जरूरी
महाराष्ट्र सरकार की बात करें तो बीजेपी शिंदे का गठबंधन पहले ही सत्ता भर के लिए मजबूत था। फिर भी अजित पवार को पाले में लाने और डेप्युटी सीएम बनाने की जरूरत क्यों आन पड़ी यह समझना जरूरी है। दरअसल बीजेपी को यह पता है कि वह शिवसेना या एनसपी जो कि महाराष्ट्र की सियासत में शुरू से ही कब्जाधारी रहे हैं। इनके बिना सत्ता की चाबी नहीं मिलने वाली है। शिवसेना को शिंदे की बगावत के बाद पहले ही तोड़ चुकी पार्टी की नजर एक मराठा चेहरे पर टिकी थी। क्योंकि शिंदे की पकड़ ठाणे के अलावा पूरे महाराष्ट्र में इतनी नहीं जितनी कि अजित पवार की। इसके अलावा अपने सीएम फेस देवेंद्र फडणवीस को डेप्युटी सीएम बना चुकी बीजेपी किसी भी हाल में शिंदे गुट को गलतफहमी में नहीं रखना चाहती थी। यही वजह है कि तीसरी बार केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए बेकरार नजर आ रही बीजेपी अब महाराष्ट्र में चुनाव से पहले अपनी पकड़ पूरी तरह से बना चुकी है।
महाराष्ट्र की दोनों बड़ी पार्टियों के धड़े बीजेपी के पास
महाराष्ट्र की राजनीति के लिए शिवसेना और एनसीपी से अलग होकर रहना ठीक वैसे ही हैं, जैसे कि पानी में रहकर मगर से बैर। शिंदे की बगावत के बाद टूटकर अलग हुई शिवसेना और अजित की बगावत के बाद एनसीपी दोनों ही इस वक्त बीजेपी के साथ हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले महाराष्ट्र में पॉलिटिकल केमेस्ट्री बीजेपी के लिए संजीवनी से कम नहीं है। हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य की दोनों बड़ी पार्टियों में टूट के बाद किस तरह से बीजेपी इसे अपनी जीत में भुना पाती है।