Wife fights for Justice : 15 साल की जद्दोजहद के बाद पत्नी को मिला इंसाफ, सुप्रीम कोर्ट ने दिवंगत पति को किया बरी

नई दिल्ली: इंसाफ की राह कभी आसान नहीं होती, लेकिन अगर हिम्मत और विश्वास कायम रहे तो न्याय भले देर से मिले, लेकिन जरूर मिलता है। इसका ताज़ा उदाहरण है केरल की मिनी नामक महिला की 15 साल लंबी कानूनी लड़ाई, जो अंततः उनके दिवंगत पति मोहनचंद्रन एन.के. को सुप्रीम कोर्ट द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी किए जाने के साथ खत्म हुई।
क्या था पूरा मामला?
यह घटना साल 2003 की है। उस वक्त मोहनचंद्रन तिरुवनंतपुरम पासपोर्ट कार्यालय में लोअर डिविजन क्लर्क (LDC) के पद पर कार्यरत थे। उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने पासपोर्ट आवेदन को जल्दी पास करने के लिए एक आवेदक से 500 रुपये रिश्वत मांगी।
सीबीआई ने दावा किया कि मोहनचंद्रन ने शिकायतकर्ता से पासपोर्ट की निर्धारित 1000 रुपये फीस के अलावा 200 रुपये अतिरिक्त अपने घर पर जमा कराने को कहा। सीबीआई ने जाल बिछाया और कुल 1200 रुपये उनके पास से बरामद किए। इसमें 1000 रुपये फीस और 200 रुपये अतिरिक्त थे।
ट्रायल और पति की मौत
बरामदगी के आधार पर मोहनचंद्रन के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत केस चला।
- 2010 में एर्नाकुलम ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी मानते हुए 1 साल की सजा सुनाई।
- जनवरी 2020 में केरल हाईकोर्ट ने भी यह फैसला बरकरार रखा।
लेकिन इस बीच मोहनचंद्रन की मौत हो गई। इसके बावजूद उनकी पत्नी मिनी ने हार नहीं मानी और सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
पत्नी ने लड़ी न्याय की लड़ाई
मिनी ने अपनी अपील में तर्क दिया कि यह पूरा केस केवल पैसों की बरामदगी पर आधारित है, जबकि रिश्वत की मांग साबित ही नहीं हुई।
- उन्होंने बताया कि 1200 रुपये में से 1000 रुपये पासपोर्ट की तयशुदा फीस थी।
- बचे हुए 200 रुपये शिकायतकर्ता ने जानबूझकर दो 500 रुपये के बीच छुपा दिए थे।
- आरोपी ने यह पैसे गिने भी नहीं थे, इसलिए उनके पास से 200 रुपये बरामद होना रिश्वत की मांग का सबूत नहीं हो सकता।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने मिनी की दलीलों को गंभीरता से सुना और 14 अगस्त 2025 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
- अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार साबित करने के लिए रिश्वत मांगना ही सबसे अहम सबूत होता है।
- शिकायतकर्ता ने खुद गवाही में कहा कि उसने रिश्वत देने की बात का समर्थन नहीं किया।
- सिर्फ पैसों की बरामदगी के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
निचली अदालतों को लगाई लताड़
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों की कार्यवाही पर सवाल उठाते हुए कहा कि आरोपी की सफाई तार्किक और यथार्थवादी थी। अगर आरोपी यह कह रहा है कि अतिरिक्त 200 रुपये का उसे ज्ञान नहीं था, तो इस दलील को नजरअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए था।
अदालत ने साफ कहा कि संदेह का लाभ हमेशा आरोपी को दिया जाना चाहिए।
मरणोपरांत मिला न्याय
आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने मोहनचंद्रन को मरणोपरांत (Posthumous) बरी कर दिया। यह फैसला न केवल मिनी के लिए जीत लेकर आया, बल्कि यह भी साबित किया कि –
- न्याय भले देर से मिले, लेकिन अगर सबूत कमजोर हों और आरोपी की सफाई मजबूत हो, तो अदालत निर्दोष साबित करने से पीछे नहीं हटेगी।
- यह फैसला आने वाले समय में भ्रष्टाचार के मामलों में सबूतों की अनिवार्यता और न्याय की गंभीरता को दर्शाता है।
“मिनी की यह लड़ाई हर उस व्यक्ति के लिए मिसाल है जो सच और न्याय की राह में मुश्किलों का सामना करता है। यह फैसला बताता है कि कानून में भरोसा रखना चाहिए, क्योंकि सच्चाई के लिए की गई लड़ाई कभी बेकार नहीं जाती।”