नई दिल्ली, Shani Dev 108 Names : शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है। भगवान शनि को न्याय का देवता भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो साधक बिना गलत आचरण किए शनि देव की पूजा करते हैं उसके ऊपर न्याय के देवता की कृपा हमेशा रहती है। ऐसा कहा जाता है अगर आपके आचरण अच्छे हैं तो शनि देव आपकी कुंडली के अशुभ प्रभाव को शुभ में बदल देते हैं। इसलिए शनिदेव की पूजा के साथ अपने व्यवहार पर भी सुधार करना चाहिए।
इसके अलावा कष्ट व दुख दूर करने के लिए शनि देव के 108 नाम का जप बेहद ही फलदायी माना गया है। तो आइए उनके 108 नाम का जप करते हैं –
शनि देव के 108 नाम –
- घन
- सौम्य
- शरण्य
- सर्वाभीष्टप्रदायिन्
- सुरवन्द्य
- शनैश्चर
- सुरलोकविहारिण्
- सुखासनोपविष्ट
- सुंदर
- शांत
- घनरूप
- घनाभरणधारिण्
- घनसारविलेप
- खद्योत
- मन्द
- वरेण्य
- सर्वेश
- मन्दचेष्ट
- महनीयगुणात्मन्
- मर्त्यपावनपद
- महेश
- छायापुत्र
- शर्व
- शततूणीरधारिण्
- चरस्थिरस्वभाव
- अचञ्चल
- नीलवर्ण
- नित्य
- नीलाञ्जननिभ
- नीलाम्बरविभूशण
- निश्चल
- वेद्य
- विधिरूप
- विरोधाधारभूमी
- भेदास्पदस्वभाव
- वज्रदेह
- वैराग्यद
- वीर
- वीतरोगभय
- विपत्परम्परेश
- विश्ववन्द्य
- गृध्नवाह
- गूढ
- कूर्माङ्ग
- कुरूपिण्
- कुत्सित
- गुणाढ्य
- गोचर
- आयुष्यकारण
- आपदुद्धर्त्र
- विष्णुभक्त
- वशिन्
- अविद्यामूलनाश
- विद्याविद्यास्वरूपिण्
- विविधागमवेदिन्
- विधिस्तुत्य
- वन्द्य
- विरूपाक्ष
- वरिष्ठ
- गरिष्ठ
- वज्राङ्कुशध
- वरदाभयहस्त
- वामन
- ज्येष्ठापत्नीसमेत
- श्रेष्ठ
- मितभाषिण्
- कष्टौघनाशकर्त्र
- पुष्टिद
- स्तुत्य
- स्तोत्रगम्य
- भक्तिवश्य
- अशेषजनवन्द्य
- विशेषफलदायिन्
- भानु
- भानुपुत्र
- भव्य
- पावन
- धनुर्मण्डलसंस्था
- धनदा
- धनुष्मत्
- तनुप्रकाशदेह
- तामस
- वशीकृतजनेश
- पशूनां पति
- खेचर
- घननीलाम्बर
- काठिन्यमानस
- आर्यगणस्तुत्य
- नीलच्छत्र
- नित्य
- निर्गुण
- गुणात्मन्
- निन्द्य
- वन्दनीय
- धीर
- दिव्यदेह
- दीनार्तिहरण
- क्रूर
- क्रूरचेष्ट
- दैन्यनाशकराय
- आर्यजनगण्य
- कामक्रोधकर
- कलत्रपुत्रशत्रुत्वकारण
- परिपोषितभक्त
- परभीतिहर
- भक्तसंघमनोऽभीष्टफलद
- निरामय
- शनि.
शनि दोष निवारण मंत्र
- ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
- ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।
- ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम। उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।।ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।।
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