
उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक बार फिर से सियासी बयानबाजी चरम पर है। समाजवादी पार्टी (सपा) से हाल ही में निष्कासित विधायक पूजा पाल ने पार्टी नेतृत्व और खासकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर गंभीर आरोप लगाए हैं। मीडिया से बातचीत में उन्होंने तीखे शब्दों में कहा, “अखिलेश को 30 साल से पीड़ितों के आंसू नहीं दिखे, लेकिन पार्टी से निकालने में उन्हें जरा भी देर नहीं लगी।”
जनता की आवाज दबाने का आरोप
प्रयागराज की फूलपुर-उर्वशी सीट से विधायक पूजा पाल ने आरोप लगाया कि वह हमेशा जनता की समस्याओं और न्याय के मुद्दों को उठाती रही हैं, लेकिन पार्टी में उनकी आवाज को लगातार दबाया गया। उनके अनुसार, सपा के अंदर ऐसे लोग हावी हैं जो केवल निजी स्वार्थ के लिए राजनीति करते हैं और सच्चाई बोलने वालों को बाहर का रास्ता दिखा देते हैं।
सिद्धांतों पर समझौता न करने का दावा
पूजा पाल ने कहा, “मैंने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। जनता के हित में बोलना मेरा कर्तव्य था, है और रहेगा। लेकिन अफसोस की बात है कि आज सपा अपने मूल सिद्धांतों से भटक चुकी है।”
निष्कासन का कारण और विवाद
पूजा पाल का सपा से निष्कासन हाल ही में पार्टी अनुशासन समिति के फैसले के बाद हुआ। पार्टी ने इसे “पार्टी विरोधी गतिविधियों” का परिणाम बताया है, जबकि पूजा पाल का दावा है कि उनका अपराध सिर्फ इतना है कि उन्होंने सच बोला।
राजनीतिक हलकों में चर्चा
इस घटनाक्रम को लेकर राजनीतिक गलियारों में कई तरह की चर्चाएं हैं। कुछ लोग इसे सपा के भीतर गुटबाजी का नतीजा मान रहे हैं, तो कुछ इसे आगामी चुनावों से पहले पार्टी द्वारा अपनी आंतरिक अनुशासन नीति को मजबूत करने की कोशिश बता रहे हैं।
सियासी गर्मी में इजाफा
पूजा पाल के इस बयान के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर से गर्माहट बढ़ गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले दिनों में यह विवाद सपा की चुनावी रणनीति और गठबंधन समीकरणों पर असर डाल सकता है।