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लंदन का इंडिया क्लब हमेशा के लिए होगा बंद! आजादी की लड़ाई में रहा है महत्वपूर्ण योगदान,अब बस इतिहास बनकर रह जाएगा

ब्रिटेन – लंदन में 70 साल पुराना ऐतिहासिक ‘इंडिया क्लब’ (India Club) अब हमेशा के लिए बंद होने जा रहा है। यह क्लब कृष्ण मेनन सहित राष्ट्रवादियों के केंद्र के रूप में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी प्रारंभिक जड़ें जमाने के लिए जाना जाता था। अब एक लंबी लड़ाई हारने के बाद यह 17 सितंबर को हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। क्लब के मालिक याडगर मार्कर और उनकी बेटी फिरोजा इस ऐतिहासिक संस्थान को पिछले 26 सालों से चला रहे हैं।

ब्रिटेन की राजधानी लंदन में द इंडिया क्लब एक मशहूर क्लब है। यह ऐतिहासिक क्लब भारतीय व्यंजनों के लिए मशहूर है। लंदन में रहने वाले भारतीयों एवं वहां के मूल निवासियों के बीच स्वादिष्ट भारतीय व्यंजनों के लिए यह जाना जाता है।

भारतीय उच्चायुक्त ने 1951 में रखी थी इसकी नींव

इस क्लब की शुरूआत 1947 में देश की आजादी के तुरंत बाद वर्ष 1951 में भारत के पहले उच्चायुक्त ने स्थापित किया था। यह क्लब देश की आजादी के बाद भारत एवं ब्रिटेन के बीच अच्छे संबंधों के प्रतीक के रूप में खड़ा किया गया था। इसलिए इसका आजाद भारत के साथ बहुत निकट का संबंध है। यह क्लब 70 सालों से ज्यादा समय से लंदन में भारतीय सभ्यता, संस्कृति, इतिहास एवं स्वादिष्ट भोजन का केंद्र बना रहा है।

17 सितंबर को बंद हो जाएगा The India Club

लेकिन दुख की बात यह है कि अब यह क्लब 17 सितंबर 2023 को हमेशा के लिए बंद कर दिया जाएगा। बावजूद इसके लंदन में रहने वाले या फिर वहां जाने वाले कई लोगों के दिलों में इस क्लब की तमाम यादें जिंदा रहेंगी। देश की आजादी के आंदोलन में शामिल होने वाले कई ऐसे लोग हैं जो इस क्लब से जुड़े रहें हैं। जिनमें से एक कृष्णा मेनन भी थे। क्लब को बंद करने के संबंध में कानूनी लड़ाई लंबे समय से लड़ी जा रही थी। जिसके हारने के बाद अब लंदन का यह मशहूर The India Club इतिहास बन जाएगा।

क्लब के बंद होने पर शशि थरूर ने जताया दुख

The India Club के संस्थापक सदस्यों में रहे चंद्रन थरूर की बेटी एवं लेखक स्मिता थरूर ने क्लब के बंद होने की खबर सुनकर नि:शब्द रह गईं। उन्होंने कहा कि मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। मैं ये खबर सुनकर बेहद दुखी एवं उदास हूं। मेरे पिता इस क्लब के संस्थापक सदस्य थे। वहीं स्मिता के भाई एवं कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी इस क्लब के बंद होने पर दुख प्रकट किया है। इसके साथ ही उन्होंने इस क्लब में ली गई अपनी एवं बहन की एक तस्वीर भी ट्विटर पर शेयर की है। इधर इस क्लब को यादगर मार्कर एवं उनकी बेटी फिरोजा पिछले 26 साल से इस संस्थान को चला रहे है। उन्होंने भी इसके बंद होने की घोषणा करते हुए इस पर दुख जताया है।

क्या है इस ऐतिहासिक ‘इंडिया क्लब’ की कहानी
भारत की आजादी की लड़ाई में इस इंडिया क्लब की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इंडिया लीग के लिए एक केंद्र के रूप में बनाया गया, यह क्लब लंदन में विभिन्न भारतीय संगठनों जैसे द इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन, इंडियन वर्कर्स एसोसिएशन और इंडियन सोशलिस्ट ग्रुप के लिए एक मिलन स्थल के रूप में कार्य करता था। इसकी सदस्यता में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अंतिम वायसराय की पत्नी लेडी माउंटबेटन जैसे नाम शामिल हैं।

डेली टेलीग्राफ ने क्लब को रेस्टोरेंट से कहीं अधिक बताया। अखबार ने इसे एक रमणीय टाइम कैप्सूल बताया जो आगंतुकों को 1960 के दशक में कलकत्ता की जीवंत आभा में ले जाता है। 1951 में लंदन में भारत के पहले उच्चायुक्त कृष्ण मेनन द्वारा स्थापित, इंडिया क्लब ने एक गहन मिशन चलाया। इसका जन्म स्वतंत्रता के बाद के भारत-ब्रिटिश सौहार्द के प्रतीक के रूप में हुआ था।

इसके संस्थापक सदस्यों में से एक रहे कृष्ण मेनन बाद में यूके में पहले भारतीय उच्चायुक्त भी बने थे। भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के बाद यह तेजी से ब्रिटिश, दक्षिण एशियाई समुदाय केंद्र में बदल गया. कृष्ण मेनन इसे ऐसी जगह बनाना चाहते थे। जहां गरीबी में जीवन बसर करने वाले युवा पेशेवर भारतीय खाना खा सकें और राजनीति पर चर्चा करके अपनी भविष्य की योजना भी बना सकें। क्लब के संस्थापक सदस्यों में से एक, चंद्रन थरूर की बेटी, लेखिका स्मिता थरूर ने कहा ‘मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैं बेहद दुखी हूं। मेरे पिता क्लब के संस्थापक सदस्य थे कुछ दिन पहले, जब मैंने पहली बार इंडिया क्लब के बंद होने की खबर सुनी तो मेरे मन में लगातार इसके बारे में ख्याल आता रहा।

स्मिता के भाई, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इसके बारे में काफी भावनात्मक पोस्ट लिखा। उन्होंने लिखा ‘मुझे यह सुनकर दुख हुआ कि इंडिया क्लब, लंदन, सितंबर में स्थायी रूप से बंद होने वाला है। इसके संस्थापकों में से एक के बेटे के रूप में, मैं उस संस्था के बंद होने पर काफी दूखी हूं, जिसने लगभग तीन-चौथाई शताब्दी तक इतने सारे भारतीयों (और न केवल भारतीयों) की सेवा की। कई छात्रों, पत्रकारों और यात्रियों के लिए, यह घर से दूर एक घर था, जहां सस्ती कीमत पर अच्छी गुणवत्ता वाला भारतीय भोजन और साथ ही दोस्ती बनाए रखने के लिए एक सौहार्दपूर्ण माहौल मिलता था।

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