
नई दिल्ली । भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई हाल ही में अपने एक बयान को लेकर विवादों में घिर गए थे। दरअसल, उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान भगवान विष्णु का उदाहरण देते हुए कहा था कि “न्यायपालिका भी समाज के कल्याण के लिए विभिन्न रूपों में कार्य करती है।” इस बयान के बाद कई संगठनों और राजनीतिक दलों ने उन पर सवाल उठाए और आरोप लगाया कि उन्होंने संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना के खिलाफ टिप्पणी की है। अब सीजेआई गवई ने इस पर अपना पक्ष साफ करते हुए कहा है कि वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं और उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था।
कैसे शुरू हुआ विवाद ?
कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा था:
“जिस तरह भगवान विष्णु समाज की रक्षा के लिए अलग-अलग अवतार लेते हैं, उसी तरह न्यायपालिका भी समय और परिस्थिति के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती है।”
उनके इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर जमकर बहस शुरू हो गई।
- कुछ लोगों ने इसे न्यायपालिका की भूमिका समझाने का सरल उदाहरण बताया।
- वहीं, कुछ संगठनों ने कहा कि सीजेआई को धार्मिक प्रतीकों का उल्लेख करने से बचना चाहिए, क्योंकि वे देश की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था के प्रमुख हैं।
CJI गवई का स्पष्टीकरण
विवाद बढ़ने के बाद सीजेआई गवई ने कहा:
“मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं। मेरे बयान का गलत अर्थ निकाला गया है। मैंने सिर्फ एक उदाहरण दिया था, किसी धर्म को प्राथमिकता देने या किसी की भावनाओं को आहत करने का कोई इरादा नहीं था। न्यायपालिका हमेशा संविधान और कानून के अनुसार ही काम करती है।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत जैसे विविधताओं वाले देश में धर्मनिरपेक्षता और समानता सबसे महत्वपूर्ण मूल्य हैं और न्यायपालिका उन पर पूरी तरह अडिग है।
विपक्ष और आलोचना
कुछ विपक्षी नेताओं और सामाजिक संगठनों ने सीजेआई की टिप्पणी पर नाराजगी जताई थी। उनका कहना था कि न्यायपालिका को हमेशा पूरी तरह निष्पक्ष और धर्मनिरपेक्ष छवि बनाए रखनी चाहिए।
- एक विपक्षी नेता ने कहा, “सीजेआई को भगवान विष्णु का उदाहरण देने की बजाय संविधान के सिद्धांतों का हवाला देना चाहिए था।”
- वहीं, कुछ वकीलों का मानना है कि ऐसी बातें न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर सकती हैं।
समर्थन भी मिला
हालांकि, सीजेआई गवई के बयान को कई लोगों का समर्थन भी मिला।
- कुछ विधि विशेषज्ञों ने कहा कि उन्होंने केवल रूपक के तौर पर उदाहरण दिया था और इसमें किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने जैसी बात नहीं है।
- सोशल मीडिया पर भी बड़ी संख्या में लोगों ने लिखा कि आलोचना अनावश्यक और अतिशयोक्ति है।
संवैधानिक संस्थाओं पर नजर
इस पूरे विवाद ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को अपने विचार किस तरह व्यक्त करने चाहिए।
- एक ओर जहां जनता चाहती है कि जज भी सहज और समझाने वाले उदाहरणों का इस्तेमाल करें।
- वहीं दूसरी ओर यह भी जरूरी है कि ऐसे बयानों से धर्मनिरपेक्षता और न्यायपालिका की निष्पक्षता पर कोई आंच न आए।
“सीजेआई बीआर गवई ने साफ किया है कि उनका बयान किसी धर्म विशेष का समर्थन नहीं था और वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। उन्होंने यह भी दोहराया कि न्यायपालिका का काम हमेशा संविधान और कानून के तहत ही होता है। विवाद भले ही उठा हो, लेकिन उनके इस स्पष्टीकरण ने यह संदेश दिया है कि न्यायपालिका धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।”