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Chargesheet Is Important : चार्जशीट क्या होती है और कोर्ट में इसका क्या महत्व होता है ? जान लीजिए इससे जुडी हर जानकारी

नई दिल्ली – चार्जशीट (Charge – sheet ) क्या होती है और कोर्ट में इसका क्या महत्व होता है, चार्जशीट और FIR में क्या अंतर होता है, जान लीजिए इससे जुडी हर जानकारी –

चार्जशीट क्या है ?

चार्जशीट को हिंदी में आरोप-पत्र कहते है। किसी भी मामले में 90 दिनों तक पुलिस अदालत के सामने चार्जशीट पेश करती है। इसी के आधार पर अदालत आरोपी के खिलाफ आरोप तय करते हैं या फिर आरोप निरस्त करती है।

क्यों महत्वपूर्ण है चार्जशीट ?

किसी भी मामले में FIR दर्ज होने के बाद जांच शुरू होती है और 90 दिनों के अंदर पुलिस को अदालत के समझ केस से संबंधित चार्जशीट दाखिल करनी होती है। अगर किसी जांच में देरी हो रही है तो पुलिस 90 दिनों के बाद भी चार्जशीट दाखिल कर सकती है, लेकिन ऐसी परिस्थिति में आरोपी बेल का हकदार हो जाता है, लिहाजा पुलिस की हरेक मामले में कोशिश होती है कि वो 90 दिनों के अंदर अंदर चार्जशीट दाखिल करे।

किस धारा के अंतर्गत चार्जशीट दाखिल की जाती है ?

पुलिस द्वारा न्यायालय के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 173 के अंतर्गत पेश करती है। गंभीर मामलों में चार्जशीट पेश करने की अवधि 90 दिन की होती हैं। जब अनुसंधान अधिकारियों द्वारा अनुसंधान पूरा ना किया गया हो या 10 साल से अधिक के सजा के मामलों में 90 दिन और 10 साल से कम की सजा के मामलों में 60 दिन में चार्जशीट दायर नहीं की गई हो तो धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत किसी भी गिरफ्तार अपराधी को बेल दी जा सकती है जिससे डिफॉल्ट बेल भी कहा जाता है। यह प्रावधान लंबी व लंबित जांच के नुकसान को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है।

चार्जशीट के आधार पर अदालत तय करती है कि मुकदमा चलेगा या नहीं ?

एक बार चार्जशीट दाखिल होने के बाद आरोपियों के खिलाफ आरोपों पर अदालत में दोनों पक्षों के वकीलों के बीच बहस होती है। इसके बाद अदालत ये तय करती है कि आरोपी के खिलाफ ट्रायल चलेगा या नहीं। यदि सबूत नहीं मिले तो अदालत आरोपी को दोष मुक्त भी कर सकती है। जांच अधिकारी द्वारा दाखिल चार्जशीट के बाद न्यायालय साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर अभियुक्तों के खिलाफ संज्ञान लेती है और उन्हें समन जारी करती है।

एफआईआर और चार्जशीट में अंतर ?

कुछ गैरकानूनी या संज्ञेय मामलों के कारण प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की जाती है, लेकिन एफआईआर के बाद आरोप पत्र (Chargesheet) तैयार किया जाता है और उन अपराधों के आरोपियों पर आरोप लगाया जाता है।

एफआईआर जांच की शुरुआत है लेकिन जांच खत्म होने के बाद पुलिस चार्जशीट कर सकती है। हर एफआईआर तुरंत और बिना समय बर्बाद किए दर्ज की जानी चाहिए, लेकिन जिन मामलों में आरोपी को गिरफ्तार किया गया है, ऐसे मामलों में पुलिस एक निर्धारित समय अवधि में चार्जशीट जमा करती है।

एफआईआर एक लिखित दस्तावेज है जो पुलिस द्वारा संज्ञेय अपराधों के कमीशन के बारे में जानकारी प्राप्त कराता है, लेकिन वही चार्जशीट एक कानून प्रवर्तन एजेंसी के द्वारा तैयार किए गए आरोप का एक औपचारिक दस्तावेज है।

चार्जशीट में कौन कौन से साक्ष्य मौजूद होते है ?

चार्जशीट में कई कालम होते है। चार्जशीट में आरोपियों के नाम, उनके द्वारा किए गए अपराध और विस्तृत जांच रिपोर्ट संलग्न होती है। यानी इसमें दो तरह के सबूतों का समावेश होता है। ORAL EVIDENCE और DOCUMENTARY EVIDENCE संलग्न होते हैं। ORAL EVIDENCE में गवाहों के बयान और DOCUMENTARY EVIDENCE में अपराध से संबंधित दस्तावेजों को समावेश चार्जशीट में होता है।

चार्जशीट पेश करने की प्रक्रिया क्या होती है ?

जब किसी व्यक्ति द्वारा पुलिस स्टेशन में कोई कंप्लेंट दर्ज़ की जाती है तो पुलिस द्वारा उसका बयान लिया जाता हैं और उसके बाद पुलिस अधिकारी के पास ये अधिकार होता हैं कि वह उस मामले में जांच बिना मजिस्ट्रेट की इजाजत के कर सकता है और घटनास्थल पर जाकर वहा मौज़ूद लोगों या आई विटनेस का बयान भी ले सकता है।

तो लिए गए बयान और उन सभी व्यक्तियों के स्टेटमेंट रिकॉर्ड करके पुलिस यह अंदाज़ा लगाती है कि मामला चलने योग्य है या नहीं। अगर है तो बयान देने वाले व्यक्तियों को पुलिस स्टेशन और फिर न्यायालय में भी बुलाया जा सकता है। जांच पूरी होने के बाद पुलिस अधिकारी मामला अगर गंभीर प्रवृत्ति का लगता है तो पुलिस द्वारा धारा 154 CrPC के अंतर्गत एफआईआर दर्ज कर लिया जाता है। और पुलिस को लगता है कि मामला गंभीर प्रवृत्ति का नहीं है तो धारा 155 CrPC के अंतर्गत NCR दर्ज कर लिया जाता है और संबंधित न्यायालय के अंतर्गत FIR की कॉपी 24 घंटे के अंदर पेश कर दी जाती है।

यानी ये कहा जा सकता है कि चार्जशीट सबसे अहम दस्तावेज है। इसमें गवाहों के बयान, शिकायतकर्ता के बयान, आरोपी के खिलाफ बनाई गई डाक्टरी रिपोर्ट, जिसको MLC (MEDICO LEGAL CERTIFICATE ) भी कहा जाता है, सभी प्रकार के दस्तावेज शामिल होते हैं।

Adv R. K. Mahajan

Adv Rupesh Mahajan is First-Generation Lawyer and Consultant, Prominently in the realm of Real Estate Laws, Criminal Law, Consumer Laws, Debt Recovery Laws, Company Laws, and Taxation Laws, Striving to Implement the Best set of Skills for the needful.

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