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Chandryaan-1 : धरती की वजह से चांद पर बन रहा है पानी, जानिये धरती से इसका क्या है कनेक्शन?

Chandryaan – 1 – चंद्रयान 3 के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने के बाद वैज्ञानिकों को चांद के कई रहस्यों के बारे में पता चला है। साथ ही चंद्रमा पर ऑक्सीजन, कैल्शियम, मैग्नीज जैसे कई पदार्थ मौजूद होने की जाकारी भी मिली। अब इसके बाद एक नया खुलासा हुआ है, कि चंद्रमा पर धीरे-धीरे पानी निर्मित हो रहा है लेकिन ये खुलासा चंद्रयान-3 (Chandrayan 3) ने नहीं बल्कि चंद्रयान-1 की मदद से किया गया है। आज से 15 साल पहले साल 2008 के नवंबर में चंद्रयान 1 (Chandrayan 1) लॉन्च किया गया था। अब चंद्रयान-1 ने वैज्ञानिकों को चंद्रमा पर पानी होने का बड़ा संकेत दिया है।

पृथ्वी की वजह से बन रहा पानी

एक रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों ने चांद पर स्थायी रूप से छाया में रहने वाले एरिये में खोजी गई बर्फ की उत्पत्ति को समझने के लिए मिशन चंद्रयान-1 के डेटा का उपयोग किया है। नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में छपी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि चंद्रमा की सतह पर होने वाले विनाश में पृथ्वी की प्लाज्मा शीट में हाई एनर्जी वाले इलेक्ट्रॉन अपना योगदान कर सकते हैं। इन्हीं कारणों से चंद्रमा पर पानी निर्मित होने में भी सहायता मिली है।

15 साल पहले लॉन्च हुआ मिशन कैसे है मददगार? 

खोजकर्ताओं ने वर्ष 2008 और 2009 के बीच चंद्रयान-1 (Chandrayan-1) मिशन पर चंद्रमा पर उपलब्ध माइनरोलॉजी मैपर की ओर से एकत्रित किए गए रिमोट सेंसिंग डेटा का परिक्षण किया। उन्होंने चांद के मैग्नेटोटेल से गुजरने के दौरान मुख्य रूप से पानी के निर्माण में होने वाले बदलावों पर ध्यान दिया। पानी का निर्माण मैग्नेटोटेल में एक जैसा ही लगता है, फिर चाहे उसमें चंद्रमा हो या नहीं। ये बता सकता है कि पानी के स्रोत या ऐसी निर्माण प्रक्रियाएं भी हैं जो डायरेक्ट सौर हवा प्रोटॉन से नहीं जुड़े हैं।

धरती के मैग्नेटोटेल का हो रहा है चांद पर बड़ा असर 

जब वह मैग्नेटोटेल के अंदर होता है, तब उस पर सौर हवाओं का हमला न के बराबर होता है। ऐसे में पानी बनने की प्रक्रिया बंद हो जाती है। शुआई ली और उनके साथियों ने चंद्रयान-1 के मून मिनरोलॉजी मैपर इंस्ट्रूमेंट के डेटा का एनालिसिस कर रहे थे। उन्होंने साल 2008 से 2009 के बीच के डेटा का एनालिसिस किया है।

धरती के मैग्नेटोटेल की वजह से चांद पर पानी के बनने की प्रक्रिया में तेजी या कमी आती है। इसका मतलब ये है कि मैग्नेटोटेल चांद पर पानी बनाने की सीधी प्रक्रिया में शामिल नहीं है। लेकिन गहरा असर छोड़ता है। जैसे सौर हवाओं से आने वाले हाई एनर्जी प्रोटोन्स-इलेक्ट्रॉन्स का असर होता है।

रिमोट सेंसिंग डेटा के बारे में रिसर्चर ने क्या कहा?

शुआई ली और उनके साथ शामिल हुए लेखकों ने 2008 और 2009 के बीच भारत के चंद्रयान 1 मिशन पर एक इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर, मून मिनरलॉजी मैपर डिवाइस से इकट्ठे किए गए रिमोट सेंसिंग डेटा का विश्लेषण किया है। ली ने कहा, ‘‘मुझे आश्चर्य हुआ, रिमोट सेंसिंग पर ध्यान केंद्रित करने से पता चला कि पृथ्वी के मैग्नेटोटेल में पानी का निर्माण लगभग उस समय के समान है जब चंद्रमा पृथ्वी के मैग्नेटोटेल के बाहर था।”

बता दें कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ‘चंद्रयान 1’ को अक्टूबर 2008 में प्रक्षेपित किया था, और अगस्त 2009 तक संचालित किया गया था। मिशन में एक ऑर्बिटर और एक इम्पैक्टर शामिल था।

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