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Gyanvapi Case: इलाहाबाद HC में मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज, ASI सर्वे मंजूरी, जानें कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए क्या कहा

Gyanvapi Case: वाराणसी स्थित ज्ञानवापी परिषद में भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण (ASI) से सर्वे कराने की मंजूरी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दे दी है। कोर्ट ने साइंटिफिक सर्वे कराए जाने संबंधी वाराणसी जिला जज के फैसले को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद की याचिका को खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंदर दिवाकर ने फैसला सुनाते हुए कहा, ”न्याय हित में सर्वे कराया जाना उचित है।” कोर्ट ने आगे क्या कुछ कहा, चलिए जानते हैं…

लेकिन उससे पहले पूरे मामले पर एक नजर

  • वाराणसी के जिला जज ने 21 जुलाई को ज्ञानवापी परिसर में वुजूखाना व शिवलिंग छोड़कर अन्य क्षेत्र के एएसआइ सर्वे का निर्देश दिया था।
  • इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
  • जिसपर पर सुप्रीम कोर्ट ने 24 जुलाई को एएसआइ सर्वे पर 26 जुलाई तक रोक लगाते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट जाने की सलाह दी थी।
  • मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस मामले में याचिका दाखिल की।
  • इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में तीन दिन 25, 26 और 27 तारीख को जुलाई को सुनवाई हुई थी।
  • हाईकोर्ट में तीन दिनों में लगभग सात घंटे सुनवाई चली थी।
  • मस्जिद पक्ष ने कहा था कि सर्वे से ढांचे को क्षति पहुंच सकती है लेकिन एएसआइ की तरफ से कहा गया कि ऐसा कुछ नहीं होगा।

अब कोर्ट की कार्यवाही पढ़ें

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायमूर्ती प्रीतिंदर दिवाकर ने पूछा था एएसआई की लीगल आइडेंटिटी क्या है? एएसआई अधिकारी ने हाई कोर्ट को जवाब देते हुए बताया कि 1871 में एएसआई गठित हुआ मानुमेंट संरक्षण के लिए। यह मॉनिटर करती है पुरातत्व अवशेष का। एएसआई अधिकारी ने हाई कोर्ट में कहा था- ‘हम डगिंग नहीं करने जा रहे।’

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान वादिनी (राखी सिंह व अन्य) के वकील सौरभ तिवारी ने कहा कि फोटोग्राफ हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि मंदिर है। हाई कोर्ट ने फैसले में कहा है वादी को श्रृंगार गौरी, हनुमान ,गणेश की पूजा दर्शन का विधिक अधिकार है।

चीफ जस्टिक ने कहा- आपकी बहस अलग लाइन में जा रही है। हम यहां एविडेंस नहीं तय कर रहे हैं। इस बात पर सुनवाई कर रहे हैं कि सर्वे होना चाहिए या नहीं और सर्वे क्यों जरूरी है?

26 जुलाई को ज्ञानवापी प्रकरण में दो चरणों में सुनवाई हुई थी, जिसके दौरान एक बार मुख्य न्यायाधीश ने मस्जिद पक्ष के अधिवक्ता से कहा, जब आप किसी पर भरोसा नहीं करते हैं, तो फैसले पर कैसे भरोसा करेंगे?

एक अगस्त को सर्वे के खर्च पर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद ने सवाल उठाया। उन्होंने कहा- सर्वे के लिए वादी पक्ष (मंदिर पक्ष) की ओर से कोई शुल्क जमा नहीं किया गया है। इस बात की जानकारी जिला जज की अदालत की ओर से दी गई है। वादी पक्ष यह खर्च नहीं दे रहा तो क्या सरकार इसे वहन कर रही है। इसका तो अर्थ हुआ सरकार मस्जिद-मंदिर में फर्क कर रही है।

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