
नई दिल्ली – पिछले दिनों बिहार की नीतीश सरकार ने जाति आधारित जनगणना सर्वे के आंकड़े जारी किए थे। जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछड़ा वर्ग की आबादी 27 फीसदी, अत्यंत पिछड़ा वर्ग की आबादी 36.01 प्रतिशत एवं सामान्य वर्ग की आबादी 15.52 प्रतिशत है। जबकि बिहार की कुल जनसंख्या 13 करोड़ से अधिक है।
SC ने जातिगत जनगणना पर नहीं लगाई रोक
जिसके बाद जातिगत जनगणना के डेटा को सार्वजनिक करने के खिलाफ मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए इसकी सुनवाई 6 अक्टूबर को रखी गई। अब आज शुक्रवार 06 अक्टूबर को इस जातिगत जनगणना मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत सर्वे पर रोक लगाने का आदेश देने से मना करते हुए मामले की अगली सुनवाई जनवरी में करने के आदेश दिए हैं।
राज्य सरकार को नीति बनाने से नहीं रोक सकते
जातिगत जनगणना मामले की सुनवाई करते हुए बेंच के अध्यक्ष जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि हम किसी राज्य सरकार को नीति बनाने या काम करने से नहीं रोक सकते। लेकिन सुनवाई में उसकी समीक्षा जरूर कर सकते हैं। जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले में विस्तृत आदेश पारित किया है। इसलिए हमें भी इस मामले को विस्तार से ही सुनना होगा। सरकार अपनी योजनाओं के लिए आंकड़े जुटा सकती है।
जनवरी में होगी कोर्ट की अगली सुनवाई
इस मामले पर सुनवाई के दौरान वकील ने कहा कि बिहार सरकार ने सर्वे के आंकड़े जारी कर दिए। सर्वे की प्रक्रिया निजता के अधिकार का हनन है. इस मामले को यथास्थिति का आदेश जारी किया जाए एवं इस पर नोटिस भी जारी किया जाए। इसके जवाब में जज ने कहा कि हमने इस पर रोक नहीं लगाई थी। हम किसी राज्य सरकार को नीति बनाने से नहीं रोक सकते लेकिन लोगों के निजी आंकड़े सार्वजनिक नहीं होने चाहिए। हम नोटिस जारी कर रहे हैं और अगली सुनवाई जनवरी में होगी।