Shardiya Navratri 2023 : आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दुर्गा अष्टमी के रूप में पूजा जाता है। इस दिन मां दु्र्गा के आठवें स्वरूप महागौरी का पूजन किया जाता है। मां महागौरी का रंग पूरी तरह से गोरा होने कारण माता को महागौरी या श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है।
कब है दुर्गा अष्टमी 2023
साल 2023 में दुर्गा अष्टमी 22 अक्टूबर के दिन पड़ रही है। नवरात्रि की अष्टमी तिथि की शुरुआत 21 अक्टूबर की रात 09 बजकर 54 मिनट से हो जाएगी। इसका समापन 22 को शाम 07 बजकर 57 मिनट पर होगा।
यह है पूजन का शुभ मुहूर्त
माता की पूजा के लिए सुबह का शुभ मुहूर्त सुबह 07:51 से सुबह 10:42 तक है। वहीं, दोपहर में मां का पूजन दोपहर 01:30 से दोपहर 02:54 तक किया जा सकता है।
शाम के समय माता दुर्गा का पूजन 05:46 से रात 08:55 और संधि पूजा रात 07:35 से रात 08:21 तक किया जा सकता है।
नवरात्रि अष्टमी का महत्व
नवरात्रि की अष्टमी को काफी फलदायी माना जाता है। नवरात्रि की अष्टमी तिथि के दिन ही मां दुर्गा ने चंड-मुंड नामक दैत्यों का वध किया था। इसके साथ जिन्होंने 9 दिन का व्रत नहीं रखा है, वे अष्टमी के दिन व्रत रख सकते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार करें पूजन
नवरात्रि की अष्टमी के दिन सुबह उठकर स्नान करें और घर के मंदिर को साफ कर लें। इसके बाद माता दुर्गा का गंगाजल से अभिषेक करें। माता को अक्षत, लालचंदन, चुनरी और लाल पुष्प अर्पित करें। सभी देवी और देवताओं का जलाभिषेक करके फल, फूल और तिलक लगाएं। प्रसाद के रूप में मां अंबा को फल और मिठाई का भोग लगाएं। घर के मंदिर में धूपबत्ती और घी का दीप प्रज्ज्विलित करें। इसके अलावा दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें। पान के पत्ते पर कपूर और लौंग रखकर माता की आरती करें। इसके साथ ही मां से जाने और अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा याचना करें।
महागौरी की पूजा का महत्व
आदि शक्ति माता दुर्गा के आठवें स्वरूप की पूजा करने से सभी ग्रह दोष दूर हो जाते हैं। महागौरी की आराधना से दांपत्य जीवन, व्यापार, धन और सुख व समृद्धि बढ़ती है। जो भी भक्त महागौरी की सच्चे से अराधना करते हैं, उनकी सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। पूजा के दौरान मां को अर्पित किया गया नारियल मां को दान कर देना चाहिए।
पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं महागौरी
देवी पार्वती का जन्म राजा हिमालय के घर पर हुआ था। आठ वर्ष का उम्र में ही उन्हें पूर्व जन्म की घटनाओं का आभास हो गया था। उस दिन से ही उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी। तपस्या से देवी पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ और इस कारण उनका नाम महागौरी पड़ गया था। इस दिन दुर्गा सप्तसती का पाठ विशेष फलदाई होती है।
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