नई दिल्ली

Mahatma Phule Jayanti 2024 : लड़कियों के लिए खोला पहला स्कूल, पत्नी को पढ़ाकर बनाया शिक्षक, ऐसे थे महात्मा ज्योतिबा फुले

नई दिल्ली – Jyotiba Phule Jayanti Special : महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले की जयंती हर साल 11 अप्रैल को मनाई जाती है। 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा में एक माली परिवार उनका जन्म हुआ था। परिवार पुणे आकर फूलों से जुड़ा व्यवसाय करने लगा था, इसलिए उनके लिए ‘फुले’ सरनेम का इस्तेमाल किया जाने लगा।

मिली ‘महात्मा’ की उपाधि

ज्योतिराव फुले को ‘ज्योतिबा फुले’ के नाम से भी जाना जाता है। समाज के दबे-कुचले, वंचित और अनुसूचित जाति के तबके लिए उनके उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए 1888 में मुंबई में एक विशाल जनसभा में उस समय के एक प्रख्यात समाजसेवी राव बहादुर विट्ठलराव कृष्णाजी वान्देकर ने उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी थी। तब से उनके नाम के आगे महात्मा जोड़ा जाने लगा।

‘सत्य शोधक समाज’ नामक संस्था की स्थापना

भारत में महात्मा फुले को बेहद सम्मान के साथ एक समाज सुधारक, विचारक, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता है। 24 सितंबर 1873 में महात्मा ज्योतिबा फुले ने ‘सत्य शोधक समाज’ नामक एक संस्था की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य नीची समझी जाने वाली और अस्पृश्य जातियों के उत्थान के लिए काम करना था। बाबा साहेब भीमराव अंबेडर भी महात्मा फुले के विचारों से प्रभावित थे।

ज्योतिबा फुले का जीवन

ज्योतिबा एक वर्ष के ही हुए थे जब उनकी मां का निधन हो गया था। उनका पालन-पोषण एक बायी की देखरेख में हुआ। उनकी शुरुआती शिक्षा मराठी में हुई। परिस्थितियों के चलते पढ़ाई में गैप आ गया। इसके बाद 21 की उम्र में उन्होंने इंग्लिश मीडियम से सातवीं की पढ़ाई पूरी की। ज्योतिबा फुले की शादी 1840 में सावित्री बाई से हुई थी।

1848 में ज्योतिबा फुले अपने एक ब्राह्मण दोस्त की शादी में गए थे, जहां कुछ लोगों ने उनकी जाति को लेकर उनका अपमान किया। इस बर्ताव को देखते हुए ज्योतिबा फुले ने सामाज से असमानता को उखाड़ फेंकने के लिए कसम खा ली थी।

महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य

महात्मा फुले का पूरा जीवन ही समाजिक कार्यों में बीता। छुआछूत और भेदभाव पर प्रहार करने के साथ ही उन्होंने किसानों और मजदूरों के अधिकार के लिए भी काम किए। महिलाओं के उत्थान के लिए उन्होंने प्रमुखता से कार्य किए। वह लड़कियों को शिक्षित किए जाने, बाल-विवाह रोकने और विधवा महिलाओं की शादी कराने के पक्षधर थे।

लड़कियों के लिए खोला पहला स्कूल

ज्योतिबा फुले का मानना था कि समाज और देश तभी आगे बढ़ सकता है जब महिलाएं भी शिक्षित हों। जब देश में बच्चियों और महिलाओं की शिक्षा के लिए किसी विद्यालय की व्यवस्था नहीं थी, तब 1848 में उन्होंने महाराष्ट्र के पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोल दिया। विद्यालय तो खुल गया लेकिन समस्या यह थी कि उसमें पढ़ाने के लिए कोई शिक्षिका उपलब्ध नहीं थी। फुले ने तब अपनी पत्नी सावित्री बाई को स्वयं पढ़ाया और उन्हें शिक्षक बनाया। इसके बाद सावित्री बाई लड़कियों के लिए शुरू किए गए स्कूल में पढ़ाने लगीं।

कार्यो में बाधा

समाज के कुछ लोगों ने उनके इस काम में बाधा भी डाली। उनके परिवार पर दबाव डाला गया। नतीजा यह हुआ कि ज्योतिबा फुले को परिवार छोड़ना पड़ा। इससे लड़कियों के लिए शुरू किए गए पढ़ाई-लिखाई के काम में कुछ समय के लिए व्यवधान आया लेकिन जल्द ही फुले दंपति ने सभी बाधाओं को पार करते हुए लड़कियों के तीन स्कूल और खोल दिए।

हर काम में पत्नी का मिला सहयोग

ज्योतिबा फुले के हर काम में उनकी पत्नी पूरा सहयोग करती थीं, इसलिए वह भी एक समाजसेवी कहलाईं। महिलाओं की शिक्षा के लिए किए गए उनके कार्यों को देखते हुए तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने 1883 में ज्योतिबा फुले को सम्मानित भी किया था। महात्मा फुले के विचार समाज के एक बड़े वर्ग को प्रेरित और आंदोलित करते आए हैं।

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