Caste Census: पटना हाई कोर्ट ने मंगलवार को नीतीश सरकार को बड़ी राहत देते हुए बिहार में जाति आधारित गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली आधा दर्जन याचिकाओं को खारिज कर दिया। इसके साथ ही इस गणना का रास्ता साफ हो गया है। बुधवार से ही प्रदेश में यह पुन: शुरू हो जाएगी।
इस बाबत पटना उच्च न्यायालय के आए फैसले के कुछ ही घंटे बाद सामान्य प्रशासन विभाग के आला अधिकारियों ने सभी जिलों के जिलाधिकारियों के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग कर उन्हें इस बारे में निर्देश दिए। मालूम हो कि जाति आधारित गणना के लिए सामान्य प्रशासन विभाग नोडल महकमा है।
सामान्य प्रशासन विभाग के संबंधित अधिकारी ने बताया कि प्राय: सभी जिलों में घर-घर जाकर प्रगणक द्वारा सर्वे किए जाने का काम लगभग पूरा हो गया है। जिन जिलों में यह काम थोड़ा भी बाकी है, उनके जिलाधिकारियों को यह कहा गया है कि एक टाइम लाइन तय कर उसे पूरा कर लिया जाए।
यह कहा गया है कि जिन अधिकारियों को मानिटरिंग के काम में लगाया गया था, उन्हें यह निर्देश दिया जाए कि वह इसे प्राथमिकता के आधार पर देखें। आधिकारिक तौर पर यह जानकारी दी गयी कि जाति आधारित गणना का 80 फीसद काम पूरा हो गया है।
पटना उच्च न्यायालय के निर्देश पर प्रगणकों द्वारा एकत्र किए गए आंकड़े को कंप्यूटर में अपलोड किए जाने का काम भी बंद था। काम शुरू किए जाने का फैसला आ जाने के बाद अब आंकड़ों को कंप्यूटर में अपलोड किए जाने का काम भी आरंभ हो जाएगा।
बता दें कि जातीय जनगणना से जनता की जाति, उपजाति, धर्म और संप्रदाय के साथ ही उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति का भी पता लगाया जाता है।
आइए समझते हैं कि जातीय जनगणना क्या होती (What is Caste Census) है? यह क्यों जरूरी है? (Importance of Caste Census) यह गणना किस तरह की जा रही है? और इसपर क्यों लग गई थी रोक?
जाति अधारित गणना क्या है? (What is Caste Census)
जाति के आधार पर आबादी की गिनती को जातीय जनगणना कहते हैं। इसके जरिए सरकार यह जानने की कोशिश करती है कि समाज में किस तबके की कितनी हिस्सेदारी है। कौन वंचित है और सबसे समृद्ध। जातीय जनगणना से लोगों की जाति, धर्म, शिक्षा और आय का भी पता चलता है। उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता चल पाता है।
यह क्यों जरूरी है? (Importance of Caste Census)
जाति आधारित गणना को लेकर अलग-अलग पार्टियों का अपना तर्क है। बिहार सरकार का मानना है कि गणना से मिले आंकड़े जाति के संदर्भ में स्पष्ट जानकारी देने का काम करेंगे। इससे सरकार को विकास की योजनाओं का खाका तैयार करने में भी मदद मिलेगी। जातीय जनगणना के बाद यह साफ हो जाएगा कि कौन सी जाति आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्तर पर पिछड़ी हुई है। ऐसे में उन जातियों तक इसका सीधा लाभ पहुंचाने के लिए नए सिरे से योजनाएं बनाई जा सकती हैं।
यह गणना किस तरह की जा रही है?
- बिहार में जाति आधारित जनगणना दो चरण में हो रही है।
- पहले फेज के सर्वेक्षण का काम पूरा हो चुका है। दूसरे फेज के दौरान पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
- इस गणना के लिये पूरे राज्य में 5 लाख 19 हज़ार कर्मचारी लगाए गए हैं, जिसमें शिक्षकों के अलावा आंगनबाड़ी सेविका और जीविका दीदी शामिल हैं।
- एक परिवार का सर्वे करने में गणना कर्मचारी को लगभग आधे घंटे लगते हैं।
- परिवार की संख्या के अलावा परिवार के सभी सदस्यों की जानकारी ली जा रही है।
- उम्र नाम के अलावा परिवार में बाहर रहने वाले सदस्यों की भी सूचना एकत्र की जा रही है।
- एक फॉर्म में लगभग 15 सदस्यों की डिटेल भरी जा सकती है।
इसपर क्यों लग गई थी रोक?
- बिहार में जातीय गणना का प्रथम चरण 7 से 22 जनवरी तक हुआ।
- दूसरे चरण की शुरुआत 15 अप्रैल से की गई, जो 15 मई, 2023 तक खत्म करने का लक्ष्य था।
- हालांकि, पटना हाई कोर्ट में इसके खिलाफ एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें यह कहा गया था कि जातिगत जनगणना का कार्य राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।
- इसके बाद पटना हाई कोर्ट ने बिहार में चल रहे जातिगत गणना और आर्थिक सर्वेक्षण पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दिया था।