नई दिल्ली – Maldives Controversy : हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे के बाद पड़ोसी देश मालदीव में हंगामा मच गया। वहां के नेता पीएम मोदी द्वारा एक्सप्लोर इंडियन आइलैंड का ट्रेंड सेट करने से नाखुश थे। यहीं से मालदीव सरकार में मंत्री मरियम शिउना और अन्य नेताओं द्वारा आपत्तिजनक बयान दिए गए थे। इसके बाद दोनों देशों में बयानबाजी का दौर शुरू हो गया। और हालात ख़राब होते चले गए। ऐसे में आज हम आपको बताएंगे कि भारत और चीन मालदीव पर ज्यादा निर्भर हैं क्योंकि दोनों देश मालदीव के पड़ोसी हैं।
मुइज्जू ने दिया था ‘इंडिया आउट’ का नारा
दरअसल, मालदीव में नई सरकार के आने के बाद से मालदीव और भारत के बीच रिश्ते अनिश्चित बने हुए हैं। चीन के पक्षधर राष्ट्रपति मुइज्जू ने चुनाव में भारत विरोधी अभियान ‘इंडिया आउट’ का नारा दिया था और जीत हासिल की थी। जबकि पिछले राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की नीति ‘इंडिया फर्स्ट’ थी। मुइज्जू के सत्ता में आने से दोनों देशों में कड़वाहट देखी गई है।
जानिए मालदीव के बारे में
मालदीव और भारत के बीच करीब दो हजार किलोमीटर की दूरी है. भारत ही मालदीव का निकटतम पड़ोसी है। दो महत्वपूर्ण ‘संचार की समुद्री लाइनें’ इस द्वीप श्रृंखला के दक्षिणी और उत्तरी भागों में स्थित हैं। मालदीव की आबादी की बात करें तो हिंद महासागर में फैले इस देश की आबादी 5 लाख से कुछ ज्यादा है और यहां 1,000 से ज्यादा छोटे-छोटे आइलैंड यानी द्वीप हैं जहां ज्यादातर लोग छुट्टियां मनाने जाते हैं। समुद्र सहित इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। मालदीव दुनिया में भौगोलिक रूप से सबसे अधिक फैले हुए संप्रभु राज्यों में से एक है और सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला सबसे छोटा एशियाई देश है।
चीन के कर्ज जाल में फंसा मालदीव!
मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति मुइज्जू का चुनावी नारा था ‘इंडिया आउट’। माले में चीन के राजदूत मुइज्जू को उनकी जीत के बाद बधाई देने वाले पहले व्यक्ति थे। मुइज़ मालदीव में चीन के विकास कार्यक्रमों की खुलकर प्रशंसा करते रहे हैं। यहां तक कहा कि इस निवेश ने माले शहर को बदल कर रख दिया है। मुइज्जू के गठबंधन में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की पार्टी भी शामिल है, जिन्होंने मालदीव को चीन के करीब लाने में अहम भूमिका निभाई थी। यामीन के कार्यकाल में मालदीव चीन के काफी करीब आ गया था।
आर्थिक स्थिति भी खराब हो चुकी है
यामीन की सरकार के दौरान मालदीव की आर्थिक स्थिति भी काफी खराब हो गई। मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों के कारण भारत और पश्चिमी देशों ने मालदीव को ऋण देने से इनकार कर दिया। आख़िरकार चीन ने उसकी मदद की। यामीन सरकार ने चीन से भारी कर्ज लिया। 2018 के अंत तक, मालदीव के कुल विदेशी कर्ज में अकेले चीन का हिस्सा 70 प्रतिशत से अधिक था। 2018 में पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने कहा था कि मालदीव पर चीन का कर्ज तीन अरब 10 करोड़ डॉलर है। इसमें मालदीव सरकार की अनुमति से सरकार से सरकार को दिए गए ऋण, सरकारी कंपनियों और निजी क्षेत्र द्वारा दिए गए ऋण भी शामिल हैं। इसका मतलब यह है कि मालदीव की हालत भी श्रीलंका जैसी हो सकती है जो चीन के कर्ज जाल में बुरी तरह फंस गया है।
जीडीपी का 10 फीसदी चीन का कर्ज चुकाने में चला जाता है
आज मालदीव की हालत ऐसी है कि उसने चीन से जो भी कर्ज लिया है उसकी उसे भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। मालदीव की जीडीपी 5405.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर है और मालदीव के बजट का लगभग 10 प्रतिशत चीन को ऋण देने में चला जाता है। चीन मालदीव में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है, बुनियादी ढांचे, व्यापार और ऊर्जा क्षेत्रों पर अपनी पकड़ बढ़ा रहा है। वहीं, मालदीव लगातार चीन के इस कर्ज जाल में फंसता जा रहा है।
ऐसे कई प्रोजेक्ट हैं जिनमें चीन और मालदीव मिलकर द्वीप पर होटल बना रहे हैं. पूर्व राष्ट्रपति नशीद ने कहा है कि इन परियोजनाओं में पैसे की कमी के कारण मालदीव चीन का भागीदार बन गया है और भविष्य में चीन पैसे देकर इन होटलों को खरीद सकता है। नशीद का मानना है कि भविष्य में ये द्वीप चीन के हाथ में चले जायेंगे।
भारत के साथ व्यापारिक संबंध
पश्चिम एशिया में अदन और होमुर्ज़ की खाड़ी और दक्षिण-पूर्व एशिया में मलक्का जलडमरूमध्य के बीच समुद्री व्यापार की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण है। मालदीव के छोटे-बड़े द्वीप उस शिपिंग लेन के बगल में हैं जहां से चीन, जापान और भारत को ऊर्जा की आपूर्ति की जाती है। भारत का लगभग 50% विदेशी व्यापार और 80% ऊर्जा आयात अरब सागर में इन एसएलओसी के माध्यम से पारगमन करता है। इसके अलावा, भारत और मालदीव दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) और दक्षिण एशियाई उप-क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग (SASEC) जैसे प्रमुख संगठनों के सदस्य हैं। भारत को भी इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए मालदीव के साथ सहयोग की आवश्यकता है।
भारत ने हमेशा मदद की
जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी, तब भी भारत ने मालदीव की मदद की और एयर इंडिया के विशेष विमान से एक लाख से ज्यादा वैक्सीन की खुराक मालदीव पहुंचाई गईं। मालदीव में जब भी कोई संकट आया है, भारत हमेशा मदद के लिए आगे रहा है। जब सुनामी आई तो भारत मदद के लिए सबसे आगे था। 1988 में जब सैन्य विद्रोह हुआ तो भारत सबसे आगे था और फिर जल संकट और कोरोना महामारी के दौरान भी भारत ने मालदीव को सबसे ज्यादा मदद पहुंचाई।