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52.79% फर्जी संस्थान, जाने अब तक 144 करोड़ रुपये का अल्पसंख्यक स्कॉलरशिप घोटाले की पूरी कहानी

नई दिल्ली – हाल ही में अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति घोटाले का मामला सामने आया है। इसकी जड़ें काफी गहरी हैं। जब सीबीआई इसमें जुटेगी और अंतिम रिपोर्ट सामने आएगी, तब तक यह घोटाला कई सौ करोड़ या कई हजार करोड़ रुपये के रूप में सामने आ सकता है। केंद्र सरकार की मौजूदा जांच नमूने के तौर पर थी। इस जांच के दायरे में सिर्फ 1572 कॉलेज थे। इनमें से 830 यानी की 52.79 फीसदी संस्थान फर्जी पाए गए और जांच रिपोर्ट में 144 करोड़ रुपये के घोटाले की पुष्टि हुई। मामला सामने आने के बाद केंद्रीय मंत्री मंत्री स्मृति ईरानी सीबीआई जांच की सिफारिश की है। आइए जानते हैं कि घोटाला कैसे बड़ा हो सकता है।

देश में कुल अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों की संख्या 1.80 लाख हैं। केंद्र सरकार ने जो अंदरूनी जांच कराई उसमें 1572 संस्थान शामिल थे, मतलब सिर्फ 0.87 फीसदी अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान ही प्राथमिक जांच में लिए गए। इनमें 52.79 फीसदी शैक्षिक संस्थान फर्जी पाए गए। कोई भी जांच सीबीआई जैसी बड़ी एजेंसी को तभी सौंपी जाती है, जब शुरुआती जांच में बड़े घोटाले होने के मिले हो। इस मामले में भी ठीक वैसा ही हुआ है। कटौती के बाद भी वित्तीय वर्ष 2023-24 में केवल अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति के मद में सरकार ने 1498 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।

कब शुरू हुई अल्पसंख्यको को स्कॉलरशिप?
स्कॉलरशिप की व्यवस्था वर्ष 2007-08 से शुरू की गई है। मतलब लगभग 15-16 साल हो गए, इस प्रॉसेस को अगर 1500 करोड़ रुपये साल का भी औसत मान लें तो बीते 15 वर्ष में 22500 करोड़ रुपये छात्रवृत्ति के नाम पर वितरित हुए हैं। यह घोटाला विभागीय अफसरों की जांच में सामने आया उसके बाद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने सीबीआई में इसकी शिकायत भेजी। देश भर के 34 राज्यों के सौ जिलों में अंदरूनी जांच में यह घोटाला सामने आया। 21 राज्यों के 1572 शैक्षिक संस्थानों की जांच हुई, इसमें से 830 फर्जी पाए गए। तब सरकार ने यह फैसला लिया कि इस पूरे मामले की बड़ी जांच कराई जाए। फर्जी संस्थान, फर्जी अभ्यर्थी, फर्जी बैंक एकाउंट, छात्र के नाम पर बड़े-बूढ़े, सब मिले. शुरुआती जांच में ऐसे संस्थान भी मिले जहां पंजीकृत स्टूडेंट्स की संख्या कम और छात्रवृत्ति पाने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है।

कई राज्यों में अलग से हो रही इसकी जांच
उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में छात्रवृत्ति घोटाले की जांच अलग से हो रही है। मुकदमे दर्ज हुए हैं। यूपी में बड़ी संख्या में फर्जी मदरसों की ग्रांट भी रोकी गई है। छात्रवृत्ति घोटाला केवल अल्पसंख्यक मामलों में नहीं है, समाज कल्याण विभाग की ओर से वितरित किए जा रहे छात्रवृत्ति में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां अलग-अलग रिपोर्ट हुई हैं। अनेक शैक्षिक संस्थान ऐसे हैं, जहां एडमिशन लेने और डिग्री देने का खेल बड़े पैमाने पर चल रहा है, जिसका कारण है छात्रवृति। अब छात्रवृत्ति कई राज्यों में सीधे लाभार्थी के खातों में देने की व्यवस्था है। बावजूद इसके सरकारी तंत्र, बैंक, शैक्षिक संस्थान और लाभार्थी मिलकर सरकारी मलाई काट रहे हैं।

देश मे किसे माना गया है अल्पसंख्यक?
भारत सरकार ने अल्पसंख्यक के रूप में मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी, जैन समुदाय को दर्जा दिया और इसे औपचारिक रूप से नोटिफाई किया गया है। साल 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून सामने आया। उसके बाद इसका गठन भी हुआ। तय हुआ था कि हर राज्य में अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया जाएगा, लेकिन आज भी डेढ़ दर्जन से ज्यादा राज्यों में आयोग का गठन नहीं हो पाया है।

फैक्ट फिगर

  • 1.80 लाख अल्पसंख्यक संस्थान हैं देश में।
  • वर्ष 2007-08 में शुरू हुई छात्रवृत्ति योजना
  • कक्षा एक से लेकर पीएचडी तक के लिए है छात्रवृत्ति
  • 34 राज्यों के सौ जिलों की ही हुई जांच
  • 21 राज्यों के 1572 में से 830 संस्थान फर्जी मिले
  • 2022 में शुरू हुई थी जांच
    इस तरह के घोटालों का सबसे ज्यादा नुकसान असल में जरूरतमंद को उठाना पड़ता है। हालांकि अब इस पर धीरे से लगाम लगी है। आधार से लिंक होने की वजह से बीते दो-तीन वर्षों में काफी चीजें बदली हैं। साल 2016 से डिजिटाइजेशन का दौर शुरू हुआ तो यह गड़बड़ियां धीरे-धीरे सामने आईं। साल 2022 में जांच हुई तो सब कुछ पुख्ता हो गया। साल 2023-24 के बजट में केंद्र सरकार ने इस मद में जो कटौती की है, उसका आधार भी यह रिपोर्ट हो सकती है।

कितनी मिलती है छात्रवृत्ति?
छत्रवृत्ति की रकम क्लास एक से लेकर पीएचडी तक के स्टूडेंट्स के लिए है। यह रकम चार हजार रुपये से लेकर 25 हजार रुपये तक देने की व्यवस्था है। हर राज्य अपने स्तर पर क्लाइस वाइज छत्रवृत्ति देता है। यह छात्रवृत्ति सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में लंबे समय से भेजी जा रही है। संस्थान कहीं चेक के रूप में तो कहीं डेबिट कार्ड और ऑनलाइन बैंकिंग के रूप में सारे अधिकार अपने पास रखते हैं। यह रकम भले ही केंद्र सरकार भेजती है, लेकिन इसे मॉनिटर करने की जिम्मेदारी राज्यों की है।

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